ढायी साल पहले उत्तर प्रदेश के सत्ता की कमान जब योगी आदित्यनाथ ने संभाली थी तो यह उम्मीद जगी थी कि प्रदेश को अब जातिवाद, भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार और माफिया गिरोहों के आतंकवाद से मुक्ति मिलेगी। पर क्या ये अपेक्षाएं पूरी हो पायी हैं? इसमें संदेह नहीं कि अनेक क्षेत्रों में सरकार की शानदार उपलब्धियां हैं। दुनिया के सबसे बड़े कुंभ के मेले का जिस शानदार तरीके से कुशलतापूर्वक भव्य आयोजन किया है उसे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की जनता ने भी सराहा है। जिन योजनाओं के क्रियान्वयन के क्षेत्र में प्रदेश पहले फिसड्डी था अब वह नंबर एक पर आ गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना, गैस कनेक्शन देने की उज्ज्वला योजना और बिजली मुहैया कराने की सौभाग्य योजना को सफलतापूर्वक लागू करके सरकार ने लाखों-करोड़ों गरीबों के घरों को खुशहाल बनाया है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे वनटांगिया, कोल, मुसहर और थारू जनजातियों के विकास के लिए ठोस कदम उठाये हैं। सामूहिक विवाह, सुपोषण से लेकर कन्या सुमंगला जैसी योजनाओं से भी सरकार की लोकप्रियता बढ़ी है। जातिवादी व्यवस्था की जकड़न से सरकार मुक्त हुई और माफिया गिरोहों के आतंक पर भी लगाम लगी है। लेकिन आम जनता की समस्याओं के निराकरण के मामले में सरकार को अभी अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
सत्ता में आने के तुरन्त बाद भाजपा की सरकार ने प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त करने का अभियान बड़े जोर-शोर से शुरू किया था। लेकिन आज ढायी साल बाद भी प्रदेश की सड़कें गड्ढा मुक्त नहीं हो पायी। लोक निर्माण मंत्री केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री भी हैं लेकिन वह अपनी सरकार के इस वादे को पूरा नहीं कर पाये हैं और अब इस बारे में कोई बात नहीं करते हैं। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर भी अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है और भ्रष्टाचार के मामले में सरकारी विभागों की कार्यशैली में सुधार लाने की जरूरत है। वाराणसी में पीडब्ल्यूडी के एक ठेकेदार की आत्महत्या तो इसकी एक बानगी है। कमीशन का रोग बड़ा गहरा है। लगभग सभी सरकारी विभाग इसमें डूबे हैं। राजस्व, नगर निगम, लोक निर्माण, सिंचाई विभाग के काम काज में घपले-घोटालों और कमीशनखोरी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। पुलिस के कामकाज में सुधार भी एक बड़ी चुनौती है। योगी सरकार के मंत्रियों की संख्या पुनर्गठन के बाद 56 हो गयी है। दो महीने पहले तक यह संख्या 46 थी। सरकार का लक्ष्य नई गति, ईमानदारी और पारदर्शी तरीके से कार्यो को आगे बढ़ाना है। अपने मंत्रियों को प्रशिक्षित और नेतृत्व क्षमता को विकसित करने के लिए योगी सरकार भारतीय प्रबंध संस्थान का भी सहयोग ले रही है। योगी आदित्यनाथ की नीति और नीयत पर किसी को भी कोई शंका नहीं है। उनका जीवन बिल्कुल सीधा साधा और पारदर्शिता की मिसाल है। डा. महेन्द्र सिंह, श्रीकांत शर्मा, जयप्रताप सिंह, ब्रजेश पाठक आदि जैसे कुछ मंत्री भी अपने कामकाज को बेहतर तरीके से कर रहे हैं।
लेकिन अधिसंख्य मंत्रियों ने अपने कामकाज के तरीके में सरकार की अपेक्षाओं के अनुरूप कोई सुधार नहीं किया है। उनका कामकाज पुरानी सरकार के मंत्रियों जैसा ही है। हालांकि तीन मंत्रियों को बर्खास्त करके बाकी मंत्रियों को सुधरने का संकेत सरकार ने दिया है। यदि आप किसी विभाग के मंत्री हैं तो अपने विभाग के कार्यो पर आपको पैनी नजर रखनी होगी। जनता की वाजिब शिकायतों पर ध्यान देना होगा और उनका समाधान करना होगा। सिर्फ नियमानुसार कार्रवाई करने के लिए लिख देने से ही काम नहीं चलेगा। ऐसे पत्रों पर विभागीय अधिकारी कोई ध्यान नहीं देते हैं। यदि मामला विभागीय कर्मचारी के भ्रष्टाचार या उत्पीड़न से सम्बन्धित हो तो अधिकारी अपने कर्मचारियों को बचाने की भरपूर कोशिश करते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार का सारा खेल मिलजुलकर होता है। कुछ मामलों में तो इसमें बड़े अधिकारी और मंत्री तक शामिल होते हैं। ऐसे सही शिकायतों पर भी ध्यान नहीं दिये जाने से विभाग और सरकार के खिलाफ आक्रोश और निराशा पैदा होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि योगी सरकार के खाते में तमाम बड़ी उपलब्धियां भी हैं। किसानों, कर्जमाफी, पीएम किसान सम्मान निधि में सर्वाधिक भागीदारी, गन्ना मूल्य का रिकार्ड भुगतान, गेहूॅ, धान, मक्का, दलहन, तिलहन की रिकार्ड खरीद के साथ-साथ उज्ज्वला, सौभाग्य की रोशनी और बिजली की बेहतर आपूर्ति से लेकर राशन वितरण तक के क्षेत्र में सरकार की शानदार उपलब्धियां हैं।
नये मेडिकल कालेजों की स्थापना और इंसेफेलाइटिस पर लगाम लगाकर भी सरकार ने सराहनीय कार्य किया है। इन्द्रधनुष अभियान और आयुष्मान से छूटे 11 लाख परिवारों के लिए सीएम जन आरोग्य योजना के तहत सुविधा देेने की व्यवस्था की गयी है। कायाकल्प योजना के जरिए प्रदेश के बेसिक स्कूलों की तस्वीर बदली गयी है। सरकार को नकल विहीन परीक्षा कराने में सफलता मिली है। पिछले वर्ष फरवरी में सरकार ने लखनऊ में 'इन्वेस्टर समिट' का आयोजन किया था जिसमें 5 लाख करोड़ रूपये के निवेश प्रस्ताव सरकार को मिले थे। इनमें जो करार (एमओयू) हुए उनमें से ग्राउंड बे्रकिंग सेरेमनी में सवा लाख करोड़ रूपये का निवेश हो चुका है। 65,000 रूपये का निवेश पाइप लाइन में है। लगभग ढायी लाख करोड़ रूपये का निवेश पिछले ढायी साल के दौरान प्रदेश में आ चुका है। यह प्रदेश में बड़े बदलाव का संकेत है। दो तीन घटनाओं को छोड़ दिया जाये तो प्रदेश की कानून व्यवस्था में बदलाव आया है। बड़े माफिया गिरोहों पर लगाम लगी है। जमीन और मकानों पर कब्जों की घटनाओं पर रोक लगी है, जो पिछली सरकारों के कार्यकाल मेें आम बात हो गयी थी। आंकड़ों के जरिए सरकार की तमाम उपलब्धियां गिनायी जा सकती हैं। लेकिन इन आंकड़ों के पृष्ठभूमि में जनता क्या महसूस करती है। इसका खास महत्व होता है। कानून व्यवस्था को बेहतर करने से लेकर उद्यमिता को प्रोत्साहन देने जैसी कई चुनौतियां राज्य सरकार के सामने हैं। मुख्यमंत्री के पोर्टल पर की शिकायतें उन्हीं विभागों को वापस भेज दी जाती हैं जिनके खिलाफ शिकायतें होती हैं। लिहाजा उसका कोई संतोषजनक समाधान नहीं निकला है। शिकायत यदि पुलिस की कार्यशैली के खिलाफ है तो शिकायतकर्ता को पुलिस से राहत मिलने कके बजाय उसकी दुश्मनी और बढ़ जाती है। योगी सरकार ने पुलिस को खुली छूट देकर उसे और अधिक निरंकुश बना दिया है। पुलिस सरकार के एक प्रभावशाली हिस्से के रूप में जनता के बीच काम करती है इसलिए उसकी छवि का असर सरकार पर पड़ता है। योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद अपराधियोें को प्रदेश छोड़ देने को कहा था या फिर जेल जाने के लिए तैयार रहे। पर सरकार अपराधियों में भय नहीं पैदा कर पायी, जिससे अपराध रूक सके। क्योंकि अपराधी प्रदेश छोड़कर नहीं गये हैं। वे यहीं और खुलेआम अपराध कर रहे हैं। पुलिस का उन्हें कोई डर नहीं है। इसके विपरीत पुलिस पर गंभीर आरोप हैं। यह आरोप और किसी ने नहीं भाजपा के विधायक और सांसद लगा रहे हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस वसूली में लगी है। चैराहों पर वाहन चेकिंग के नाम पर लोगों से पैसा लूटा जा रहा है। अपराधियों और हुड़दंगियों की घेराबंदी कर पकड़ने के बजाय अवैध रूप से लगाये गये एअरकंडीशंड बूथों में आराम करती हुई देखी जा सकती है। चैराहे पर ट्रैफिक पुलिस की जगह होमगार्डो को ड्यूटी करते हुए देखा जा सकता है। एक तरफ जहां पुलिस से संवेदनशील होने की उम्मीद करते हुए मित्र पुलिस बनने का खाका खींचा जा रहा है, वहीं कुछ ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं, जब पुलिस सुधार की उम्मीदें निराशा में बदल जाती हैं। कुछ ऐसा ही मामला सिद्धार्थनगर जिले के खेसरहा थाना क्षेत्र में सामने आया है, जहां दरोगा और सिपाही ने एक दुकानदार को उसकी मासूम बेटी के सामने बीच चैराहे पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और मंुंह पर जूता रख दिया। हालांकि इसका वीडियो वायरल होने के बाद एसपी ने दोनों को निलंबित कर दिया। जांच सीओ को सौंप दी गई है। लेकिन क्या इस घटना की परिणति महज इतनी भर ही है या इस पर नये सिरे से विचार करने की जरूरत है। संयोग से इस घटना का वीडियो बनाकर किसी ने अपलोड कर दिया और यह लोगों के सामने आयी। ऐसी अनेक घटनाओं के उदाहरण दिये जा सकते हैं जहां पुलिस का बर्बर चेहरा उजागर होता है। इसलिए सिद्धार्थनगर का मामला महज एक घटना मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह पुलिस महकमे में बिगड़ैल, अनुशासनहीन, संवेदनहीन, गैर, जिम्मेदार और अराजक पुलिसकर्मियों की एक मिसाल है, जो समाज में रक्षक पुलिस का भरोसा जगाने के बजाय उसमें पुलिस के प्रति भय, अविश्वास और आक्रोश पैदा करते हैं। कई पुलिस थानों पर आज भी माफिया गिरोह, गुंडों का राज है। इसलिए पुलिस अपराधियों से तो डरी सहमी नजर आती है और आम जनता का उत्पीड़न करती है। इससे पूरी सरकार की छवि धूमिल होती है। इसलिए सरकार को ऐसे पुलिस कर्मियों पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने होंगे। उसे भ्रष्ट और निरंकुश पुलिस कर्मियों पर लगाम और अच्छे पुलिस कर्मियों को प्रोत्साहन देना होगा। इसके लिए उसे आम जनता से मिलने वाली शिकायतें की तय समय में सीबीसीआईडी से जांच कराकर कार्रवाई करने की व्यवस्था बनानी चाहिए।
- लेखक हिंदी विश्वकोश के सहायक संपादक रह चुके हैं। आजकल स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य कर रहे हैं।